क्या लौट रहा है हिटलर-मुसोलिनी-स्टालिन का दौर ?
कोविड 19 और विश्व आर्थिक मंदी के चलते क्या हम एक बार फिर हिटलर, मुसोलिनी और स्टालिन के दौर में पहुंचने वाले हैं । विश्व के ताजा हालातों पर नजर डालने से कमोबेश इसी तरह के संकेत मिल रहे हैं ।
विश्व इतिहास के विद्यार्थी होने के नाते ऐसा लगता है कि दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों के शासन की कमान ऐसे लोगों के हाथों में है जो अपनी प्रशासनिक, आर्थिक, कूटनीतिक विफलताओं को छिपाने के लिए छद्म राष्ट्रवाद और नेशन फर्स्ट के दर्शन को अपनाकर जनता का ध्यान मूल मुद्दों से भटकाने में लगे हैं... Aspiration, Hope और ड्रीम सेलिंग करने वाले ये नेतागण खुद को अधिनायकवादी और तानाशाही रास्ते पर ले जाने की कोशिश में जुटे हैं ।
चीन और रूस का उदाहरण हमारे सामने है, इन देशों के राष्ट्रपतियों ने खुद को असीमित अधिकार दे रखा है और ऐसा करते वक्त इन नेताओं ने अपने अपने देश की जनता से शांति, खुशहाली, रोजगार, विकास और सुरक्षा का वायदा किया है। यह अलग बात है कि दुनिया के बाकी देशों की तरह इन देशों में भी गरीबी, बेरोज़गारी और भुखमरी का बोलबाला है । छद्म राष्ट्रवाद का नारा देकर इन देशों के दोनों नेताओं ने नागरिक और मानवीय अधिकारों को समाप्त कर दिया है ।
अमेरिका के हालात भी कमोबेश बाकी देशों की तरह हैं । वहाँ भी राष्ट्रवाद और racial discrimination का सहारा लेकर सत्ता के शीर्ष पर पहुँचे ट्रम्प की कोशिश तानाशाह बनने की है ।
रूस, अमेरिका और चीन की नकल दुनिया के बाकी देशों के शासक भी करने में जुटे हैं । उनकी कार्यशैली से लेकर बॉडी लैंग्वेज तक सब रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से मिलती जुलती दिख रही है ।
इन हालातों के मद्देनज़र ऐसा कहा जा सकता है कि दुनिया एक बार फिर हिटलर- मुसोलिनी और स्टालिन के दौर की तरफ बढ़ती नज़र आ रही है । अगर ऐसा हुआ तो यह स्थिति संपूर्ण मानव सभ्यता और मानवता के लिए विनाशकारी साबित होगी ।
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