मायावती ने राज्य सभा से इस्तीफ़ा देकर देश में चल रही ग़ैर भाजपा राजनीति की कोशिस को रफ़्तार दे दी है मायावती के साथ लालू यादव भी हैं
वैसे तो भारत में लालू और मायावती की छवि दाग़दार नेता की रही है
बावजूद इसके इन नेताओं का अपना अपना वोट बैंक है इसी वोट बैंक के चलते दोनों भारतीय राजनीति में relevant बने हुए हैं
बिहार इसके पहले भी भारत की राजनीति को दिशा देता रहा है
लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने congress के ख़िलाफ़ संपूर्ण क्रांति का बिगुल पटना के गांधी मैदान में फूँका था
लालू नीतीश सहित तमाम नेता संपूर्ण क्रांति की ही उपज हैं
अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आंदोलन भी महात्मा गांधी ने बिहार के चंपारन से शुरू किया था
आधुनिक भारत में l k Advani के रथ यात्रा को भी चीफ़ मिनिस्टर के रूप में लालू ने ही रोकी थी
लेकिन बदले हालात में लालू मायावती सहित सम्पूर्ण विपछ नरेंद्र मोदी के मुक़ाबले अपनी साख खो चुका है
नरेंद्र मोदी के बेदाग़ छवि सम्पूर्ण विपछ पर भारी दिखायी दे रही है
शायद यही कारण है की ३६ का रिश्ता रखने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी बिहार में मोदी के ख़िलाफ़ लालू द्वारा आयोजित की जाने वाली रैली में एक साथ सामिल होने वाले हैं
लालू यादव इस political polarisation के ज़रिये नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ भले ही चुनौती पेश ना कर पायें लेकिन नीतीश को तो परेशानी में डाल सकते हैं
और अखिलेश मायावती को समर्थन देकर बिहार में यादव मुस्लिम और दलित vote bank ko consolidate कर सकते हैं