समाज में
समानता का सपना तो देश-दुनिया के कई चिंतकों ने देखा....साम्यवाद के जन्मदाता
कार्ल मार्क्स से लेकर एकात्म मानववाद का दर्शन देने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय
तक ने समाज में गैर बराबरी और HAVES AND HAVE NOTS के बीच की खाई
को पाटने की बात कही... लेकिन हकीकत के धरातल पर इस सपने को उतारा नरेंद्र मोदी ने...
महात्मा गांधी
और समाजवाद के पुरोधा डॉक्टर राममनोहर लोहिया भी गैर बराबरी मिटाने के पक्षधर थे...लेकिन
जिस साहस से नरेंद्र मोदी ने कदम उठाया, उतना साहस शायद ही
इतिहास में किसी महान नेता या चिंतक ने दिखाया हो... ये दावा नरेंद्र मोदी के
समर्थकों का है... मोदी समर्थकों का मानना है कि Demonetization की वजह से जहां एक तरफ काले धन पर लगाम लगेगी तो वहीं दूसरी तरफ आर्थिक
विषमता और आर्थिक गैर बराबरी का खात्मा होगा....खुद पीएम मोदी भी कमोबेश ऐसा ही
दावा कर रहे हैं...
Demonetization के
फैसले के साथ खड़े लोगों का मानना है कि ये फैसला समाज के आधार में मूलचूल
परिवर्तन लाने वाला साबित होगा... धनकुबेरों की तिजोरियां खाली होंगी... तो गरीब
और किसान के हाथ में पूंजी आएगी....समाज में संसाधनों का समान बंटवारा होगा....यही
मार्क्स का साम्यवादी समाज है...
मार्क्स ने
अपनी थ्योरी में कहा था कि इस दुनिया में दो तरह के लोग है...एक वो जिनके पास है, दूसरे वो जिनके पास नहीं है... यानी 'HAVES & HAVE-NOTS' ...
HAVES को मार्क्स ने पूंजीपति कहा और HAVE-NOTS को श्रमिक वर्ग बताया... समाज में धन-दौलत के इसी असमान बंटवारे को
मार्क्स ने बताया... मोदी अब इसी असमान बंटवारे को खत्म कर रहे हैं ...
पंडित दीनदयाल
उपाध्याय ने भी कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति की बात की.... मोदी समर्थकों का दावा
है कि Demonetization से सबसे ज्यादा ये कतार में खड़ा समाज
का अंतिम व्यक्ति ही मजबूत होगा...समाज में गैरबराबरी मिटेगी....और अमीर और गरीब
के बीच की खाई पट जाएगी ....
लोहिया
समाजवादी थे... राजनीतिक अधिकारों के पक्षधर रहे डॉ. लोहिया ऐसी समाजवादी व्यवस्था
चाहते थे जिसमें सभी की बराबर की हिस्सेदारी रहे... वह कहते थे कि सार्वजनिक धन समेत किसी भी
प्रकार की संपत्ति प्रत्येक नागरिक के लिए होनी चाहिए ... लोहिया की सारी चिंता
मानव विकास की यात्रा में बढ़ती असमानता थी... वे मानते थे कि उसी असमानता से गुलामी
और दमन का रास्ता साफ होता है और बाद में उसी से युद्ध की स्थितियां बनती हैं... लेकिन, उनकी खासियत यह थी कि विकास की इन स्थितियों की व्याख्या वे पूंजीवाद और
साम्यवाद के प्रभावों से मुक्त होकर करना चाहते थे...
उदारीकरण के
बाद भारत में समाज के बीच आर्थिक और सामाजिक असमानता की खाई और चौड़ी हुई... अगर
ये असमानता सिर्फ मेहनत और नियमों के भीतर युक्ति के आधार पर होती तो सामाजिक
असमानता कुछ हद तक संयत रहती.... लेकिन ऐसा हुआ नहीं....नियम-कायदों से अलग देश की
अर्थव्यवस्था में भयंकर उथल-पुथल मची....आए दिन नये नये घोटाले ना सिर्फ सामने आना
शुरु हुए... बल्कि विकास के नाम पर होने वाले हर काम में एक ऐसी समानान्तर
अर्थव्यवस्था खड़ी हो गयी...जिसमें सरकारी खजाना कागजों में समृद्ध हुआ... लेकिन
आम जनता को उसका लाभ अत्यंत सीमित रुप में मिला... अब उम्मीद है कि नोटबंदी का
फैसला इस सीमित लाभ को व्यापक तौर पर इस आम आदमी तक पहुंचाएगा...
दूसरी तरफ
महात्मा गांधी ने अपने सपनों के भारत में जिस दृष्टि की कल्पना की थी
उसमें व्यापकता
थी....ग्रामीण विकास की तरफ महात्मा गांधी की दृष्टि हमेशा सजग रही ... ग्रामीण
विकास के लिए जिन बुनियादी चीजों को वे जरूरी समझते थे, उनमें ग्राम स्वराज, पंचायतराज, ग्रामोद्योग, महिलाओं की शिक्षा, गांवों की सफाई, गांवों का आरोग्य और समग्र ग्राम
विकास प्रमुख हैं...गांधी चाहते थे कि भारत का अगर सही मायनों में विकास होना है
तो सरकारें पंचायतों को मजबूत करें....कुटीर उद्योगों....स्थानीय बाजार को विकसित
करें....और लोगों को स्वावलंबी बनाने के लिए प्रेरित करें..और अब एतिहासिक नोटबंदी
के बाद कोशिश है कि ये सारी संस्थाए एक साथ मजबूत होकर देश की मजबूती बढ़ाएंगी..
गांधी और
लोहिया के नाम पर राजनीति देश और प्रदेश के स्तर पर खूब चमकी ... लेकिन साथ-साथ
गांधी और लोहिया के सपनों का भारत उनके विचारों से उतना ही दूर होता गया....
मौजूदा सरकार
ने ऐसे कई कामों का दावा किया जो गांव के लोगों को तरक्की के रास्ते पर ले जाने
वाले हैं... लेकिन शायद इन कामों से असल लक्ष्य तक पहुंचने में कुछ संदेह रह गया
और इसीलिए नोटबंदी के फैसले पर अमल किया गया... अब उम्मीद है कि इस बड़े फैसले के
बाद भारत देश में सैंकड़ों सालों बाद अब सबसे बड़े बदलाव आ जाएंगे.. 30 दिसंबर के बाद जब नोटबदली की मियाद पूरी हो जाएगी....तो मौजूदा सरकार
लोहिया और गांधी के सपनों का भारत बना पाएगी....
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