नरेंद्र
मोदी भारतीय प्रधानमंत्री
के तौर पर अब तक 12
देशों
की यात्राएं कर चुके हैं ...
ये
यात्राएं पहली नज़र में विदेश
नीति का हिस्सा नज़र आती हैं
...
जो
दो देशों की बीच के सामरिक और
व्यापारिक रिश्तों को सुदृढ़
बनाने के लिए की गई हों ...
लेकिन
मोदी की अब तक की सारी विदेश
यात्राओं पर नज़र डाले तो ये
साफ हो जाता है कि ये यात्राएं
महज मेज़बान देशों के साथ अपने
संबंधों को मजबूती देने के
लिए नहीं की गई हैं ..
नरेंद्र
मोदी भूटान,
ब्राज़ील,
नेपाल,
जापान,
अमेरिका,
म्यांमार,
ऑस्ट्रेलिया,
फिजी,
सेशेल्स,
मॉरीशस
और श्रीलंका की यात्रा कर चुके
हैं ...
ब्राज़ील,
अमेरिका,
म्यांमार
और ऑस्ट्रेलिया की बात छोड़
दें तो बाकी देशों में नरेंद्र
मोदी ने State
Visit किया
है … जिसका मकसद दोनों देशों
के आपसी रिश्तों को एक दूसरे
के हित में मजबूत बनाने की
रणनीति रही है … लेकिन क्या
सिर्फ इसी कूटनीतक मकसद से
नरेंद्र मोदी ने इन देशों का
दौरा किया है ?
नरेंद्र
मोदी दरअसल इन यात्राओं के
जरिए Pro
American Agenda को
आगे बढ़ा रहे हैं … चीन का बढ़ता
दबदबा भारत को सोचने पर मजबूर
करता रहा है लेकिन अमेरिका
भी नहीं चाहता कि एशिया महाद्वीप
का देश चीन और ताकतवर बनता जाए
… बिजनेस के मामले में चीन
अमेरिका को चुनौती देता नज़र
आता है तो चीन की बढ़ती ताकत
भारत को अपने कूटनीतिक रिश्तों
पर बार-बार
विचार करने को मजबूर करता है
…
लिहाजा
नरेंद्र मोदी उन देशों में
जा रहे हैं जहां चीन का दबदबा
बढ़ रहा है ..
या
फिर ऐसे देश जो चीन के पूरी
तरह खिलाफ हैं ...
भारत
लगातार हिंद महासागर और इसके
तट पर बसे देशों में चीन के
बढते असर से दबाव में है और
मोदी की इन यात्राओं से कोशिश
उस असर को कम करने की है ..
चीन
की जो योजनाएं हैं फिलहाल भारत
उसका मुकाबला करने के लिए
सक्षम नहीं है लिहाजा कोशिश
ये है कि पड़ोसियों से रिश्ते
मजबूत किए जाएं ताकि चीन के
बढते असर पर लगाम लग सके ..