दूध
का जला छाछ भी फूंक-फूंककर
पीता है...
ये
कहावत इन दिनों राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ पर बिल्कुल
सटीक बैठ रही है ...
भले
ही बीजेपी इस साल हुए लोकसभा
चुनावों में सबसे बड़ी जीत
हासिल कर भारतीय राजनीति के
इतिहास में एक नया अध्याय शुरु
कर चुकी हो ...
संघ
नहीं चाहता कि किसी भी कीमत
पर बीजेपी के हाथ लगी इस सफलता
की चमक फीकी पड़े ...
लिहाजा
संघ लगातार बीजेपी और संघ से
जुड़े तमाम ऑर्गेनाइजेशंस
को उनके काम-काज
से जुड़ी नसीहतें दे रहा है
...
संघ
प्रमुख मोहन भागवत ने विश्व
हिंदू परिषद को नसीहत दी है
कि,
'वीएचपी
के नेता कुछ भी बोलने से पहले
एक बार सोचें.....
इस
बात का पूरा ख्याल रखा जाए कि
सामाजिक सद्भाव प्रभावित ना
हो ...
हमारी
परंपरा सभी धर्मों का आदर करना
है और संघ हमेशा से ही सामाजिक
समरसता और सद्भाव का पक्षधर
रहा है',
दरअसल
संघ का शीर्ष नेतृत्व इस बात
से भलीभांति परिचित है कि
आक्रामक राजनीति के जरिए सत्ता
नहीं पाई जा सकती और अगर सत्ता
मिल भी जाए तो उस पर काबिज रह
पाना मुश्किल है ...
संघ
इस सियासी हकीकत का स्वाद
बाबरी विध्वंस के दौरान चख
चुका है ..
1992 में
जब बाबरी मस्जिद गिरा दी गई
थी तब ना सिर्फ 4
राज्यों
में बीजेपी की सरकार को बर्खास्त
कर दिया गया था बल्कि जनता के
बीच बीजेपी ने अपना भरोसा भी
खो दिया ..
जिसे
वापस पाने में पार्टी को कई
साल लग गए ...
सत्ता
से बाहर रहने और सत्ता में
रहने पर कार्यशैली में अंतर
लाना स्वाभाविक भी है और जरूरी
भी ... सत्ता
जिम्मेदारी लेकर आती है ....
जो
जनता भावनाओं में बहकर वोट
देती है ....वही
जनता अपना निर्णय बदल भी सकती
है अगर उनकी भावनाओं को ठेस
पहुंचाया जाए ..
गुजरात
में हुए दंगों के बाद देश भर
में अपने कट्टर हिंदु नेता
की छवि से निकलने में नरेंद्र
मोदी को 12
साल
लग गए ...
और
सफलता भी तब हासिल हुई जब मोदी
ने सबका साथ,
सबका
विकास....
एपीज़मेट
फॉर नन,
जस्टिस
फॉर ऑल जैसे नारे दिए ...अब
अगर उनके प्रधानमंत्री रहते
देश में सद्भाव का माहौल बिगड़ता
है तो इसका सबसे बड़ा नुकसान
नरेंद्र मोदी को ही उठाना होगा
...
संघ
भी किसी कीमत पर नहीं चाहेगा
कि बीजेपी को जनता का जो भरोसा
हासिल हुआ है,
उसे
नुकसान पहुंचे ...
और
संघ अपना एजेंडा पूरा करने
से पीछे रह जाए ...
संघ
का एजेंडा तभी पूरा हो सकता
है जब केंद्र में बीजेपी की
सरकार रहेगी ...
इसीलिए
मोदी का आभामंडल बनाए रखने
के लिए संघ अपने सभी Frontal
Organization को
निर्देश देता नज़र आ रहा है
....ताकि
अखंड भारत का लक्ष्य हासिल
किया जा सके और ये लक्ष्य आंतरिक
शांति बनाए रखकर ही हासिल किया
जा सकता है ...
भारत
की जो सामाजिक,
भौगोलिक
स्थिति है वो इसे दुनिया के
बाकी मुल्कों से अलग करती है
.. भारत
की 20 फीसदी
आबादी के विकास के बिना देश
के विकास की कल्पना नहीं की
जा सकती ..
भारत
की सरकार मौजूदा संवैधानिक
ढांचे में रहते हुए किसी
संप्रदाय विशेष को दोयम दर्जे
का नागरिक नहीं मान सकती ...
और
इस भौगोलिक,
आर्थिक,
सामाजिक
संरचना का अंदाजा संघ प्रमुख
को है ..
इसीलिए
संघ अपनी ठोस रणनीति से ही आगे
बढ़ रहा है ..
और
इसी रणनीति का हिस्सा है उन
बयानों पर काबू रखना जो सद्भाव
के माहौल को बिगाड़ सकती हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें