विकास
की सुस्त रफ्तार की सबसे बड़ी
वजह है परियोजनाओं का लम्बे
वक्त तक अटकना और उनके क्लीयरेंस
में ज्यादा वक्त लगना...लाखों
करोड़ की परियोजनाएं मौजूदा
वक्त में सिर्फ इसलिए ठंडे
बस्ते में पड़ी हैं क्योंकि
इन्हें या तो क्लीयरेंस नहीं
मिला या फिर नौकरशाही और सियासत
के चक्रव्यूह में ये लम्बी
खिंचती चली गई.....मनमोहन
सरकार ने प्रोजेक्ट्स की
क्लीयरेंस के लिए प्रोजक्ट
मॉनिटरिंग ग्रुप का गठन किया
था जिसकी वजह से परियोजनाओं
के लिए जरूरी क्लीयरेंस में
रफ्तार तो आई लेकिन उनपर काम
शुरु हुआ या नहीं सरकार के पास
इसे चेक करने का कोई मैकेनिज़्म
नहीं था ...
अब
मोदी सरकार ने पीएमजी यानि
प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग ग्रुप
को ही इस बात की जिम्मेदारी
दे दी है कि PMG
ना
सिर्फ परियोजनाओं को क्लीयरेंस
दें बल्कि इस पर भी नज़र रखें
कि उन पर तय सीमा के अंदर काम
शुरु हुआ या नहीं ...
यानि
केंद्र सरकार अब परियोजनाओं
की सीधी निगरानी करने जा रही
है...और
इसके लिए बकायदा मैकेनिज्म
विकसित किया जा रहा है...अब
सभी लम्बित प्रोजेक्ट्स की
डीटेल ऑनलाइन होगी और प्रोजेक्ट्स
से जुड़े आवेदन इंटरनेट पर
ट्रैक किए जा सकेंगे..
प्रोजेक्ट
मॉनिटरिंग ग्रुप
दरअसल पिछली सरकार के
दौरान जून 2013
में
ही बनाया गया था ताकि
क्लीयरेंस मिलने में देरी
की वजह से विकास की रफ्तार
सुस्त ना हो सके ...
और
तब से अब तक लगभग पांच लाख करोड़
की लागत वाली 151
परियोजनाओं
को क्लीयरेंस दिया जा चुका
है....हालांकि
अभी भी 11
लाख
करोड़ के 162
प्रोजेक्टस्
लटके पड़े हैं जिनमें से 42
फीसदी
परियोजनाएं पर्यावरण से
जुड़ी हैं...
इसकी
एक वजह ये भी है कि क्लीयरेंस
के लिए सबसे ज्यादा मामले
पर्यावरण विभाग के पास ही आते
हैं ...
परियोजनाओं
को फास्ट ट्रैक क्लीयरेंस
देने के लिए जब पीएमजी का गठन
किया गया था तब शुरु शुरु में
इसके अन्तर्गत 62
प्रोजेक्ट्स
थे जो अब बढ़कर 438
तक
पहुंच चुके हैं..जिनकी
कुल लागत 21
लाख
करोड़ की है...परियोजनाओं
के क्लीयरेंस में तेजी के चलते
उद्योगपतियों को भरोसा बढ़ा
है लिहाजा योजनाओं की लागत
भी बढ़ी है...
परियोजनाओं
पर काम शुरु हुआ या नहीं इस पर
सरकार पहले डिपार्टमेंट ऑफ
फाइनेंशियल सर्विस के जरिए
निगरानी रखती थी लेकिन अब ये
काम भी प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग
ग्रुप के पास ही है ..
और
पीएमजी ने इसके लिए एक खास
मैकेनिज्म भी विकसित किया
है...
अब
पूरे प्रकिया को ऑनलाइन डाला
जा रहा है ...
यानि
निवेश के लिए तैयार इंडस्ट्री
हो या फिर,
क्लीयरेंस
के लिए जिम्मेदार विभाग ,
सब
एक साथ ही पूरी प्रक्रिया से
जुड़े होंगे और सबको पता होगा
कि परियोजना किस स्तर पर रुकी
है या उसमें कहां काम किया
जाना है ...
इतना
ही नहीं हर स्तर पर क्लीयरेंस
के लिए एक समय सीमा भी तय कर
दी गई है जिसके अंदर किसी भी
प्रोजेक्ट को संबंधित विभाग
को क्लीयरेंस देना ही होगा
...
इस
सुविधा की शुरुआत पर्यावरण
मंत्रालय से की गई है और धीरे
धीरे इसे बाकी मंत्रालयों
में भी लागू कर दिया जाएगा ..
PMG का
गठन केंद्र की सरकार ने जून
2013
में
किया था ताकि केंद्रीय योजनाओं
में तेजी आए लेकिन धीरे धीरे
राज्य भी इससे जुड़ते जा रहे
हैं … PMG
1 हज़ार
करोड़ से ज्यादा रुपयों के
निवेश वाली परियोजनाओं के
लिए जिम्मेदार होती है लेकिन
राज्यों में कई योजनाएं इससे
कम पूंजी निवेश की होती हैं
… और ऐसी योजनाओं केलिए राज्य
सरकारें PMG
के
साथ मिलकर मैकेनिज्म विकसित
कर रही हैं … ताकि राज्यों में
भी 100
से
लेकर 1000
करोड़
तक की परियोजनाओं को आसानी
से क्लीयरेंस मिल सके और इस
पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता
हो..
…
पारदर्शिता
से मतलब पूरी प्रक्रिया में
सबको पता हो कि कहां दिक्कतें
आ रही हैं और उसका कैसे निदान
किया जा सके … इसके लिए प्रोजेक्ट
मॉनिटरिंग ग्रुप में 12
सब
ग्रुप बनाए गए हैं … इनके
चेयरमैन अनिल स्वरूप हैं …
ये ग्रुप एक तय दिन पर बैठक
करता है जिसमें निवेशक,
संबंधित
मंत्रालय के सब ग्रुप का
प्रतिनिधि,
चेयरमैन
अनिल स्वरूप और प्रोजेक्ट को
स्पॉन्सर करने वाला ग्रुप
शामिल होता है ….
और
इस मीटिंग की पूरी अपडेट पोर्टल
पर डाली जाती है...जाहिर
है ये एक बेहतर कोशिश है और
इससे निवेश का माहौल बेहतर
होता है...लेकिन
इसमें राज्यों की भूमिका भी
अहम है...राज्यों
का पक्ष सुनने के लिए पीएमजी
के अधिकारी हर सोमवार और
शुक्रवार को राज्यों में जा
रहे हैं...फिलहाल
पांच राज्यों में ये व्यवस्था
शुरु हो चुकी है..
और
आने वाले एक महीने में 5
और
राज्य भी इस व्यवस्था को अपनाने
जा रहे हैं ...
पीएमजी
के कामकाज को लेकर कई राज्यों
से अच्छी प्रतिक्रिया
मिली है ...इन
राज्यों के अधिकारी भी बढ़
चढ़कर इसमें सहयोग कर रहे
हैं....राज्यों
के अधिकारी भी समझने लगे हैं
कि निवेश से उन्हें भी फायदा
है...दरअसल
ये एक बेहतर शुरुआत है पहले
से बनी संस्थाओं के बेहतर
इस्तेमाल की...पीएमजी
भी उन्ही में से एक है...जिसने
निगरानी सिस्टम का दायरा और
भी ज्यादा बढ़ाया है....जाहिर
है अगर इस नए मैकेनिज्म का
हिस्सा सभी राज्य और सभी विभाग
बनते हैं तो यकीनन ना केवल
परियोजनाओं की रफ्तार
बढ़ेगी...बल्कि
उद्योग जगत में भी भरोसा बढ़ेगा
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