इस
बात को ज्य़ादा दिन नहीं बीते
हैं जब रशियन संसद ड्युमा में
दिए पुतिन के भाषण ने खलबली
मचाई थी ....
अब
एक बार फिर वही चर्चा नरेंद्र
मोदी के हिंदी में बातचीत के
फैसले के बाद हो रही है ...
नरेंद्र
मोदी इसी साल सितंबर में अमेरिका
की यात्रा पर होंगे जहां वो
युनाइटेड नेशंस की बैठक में
हिस्सा लेंगे ....
मोदी
ने तय किया है कि इस दौरान वो
बाकी नेताओं से हिंदी में ही
बात करेंगे ...
मोदी
का ये हिंदी प्रेम ना सिर्फ
उनके राष्ट्रवादी छवि को और
पुख्ता करता है बल्कि इस बात
को भी बल देता है कि वो भारतीय
पुतिन हैं ..
मोदी
भी एक राष्ट्रवादी नेता की
तरह भारत को एक महान राष्ट्र
बनाना चाहते हैं ...
इसके
लिए चाहे आलोचना ही क्यों ना
झेलनी पड़े ...
शायद
इसीलिए राजनैतिक विश्लेषक
मोदी को भारत का पुतिन कहते
हैं ... ..
पुतिन
की छवि एक कट्टर राष्ट्रवादी
छवि वाले नेता की है ...पुतिन
ने हमेशा राष्ट्रवाद को सबसे
ऊपर रखा है.
पुतिन
ने 2013 में
रूसी संसद को संबोधित करते
हुए कहा था ...
''
रूस
में रूसी रहते हैं...
कोई
भी अल्पसंख्यक समुदाय चाहे
वो कहीं का भी हो,
अगर
उन्हें रूस में रहना है,
काम
करना है,
अपना
पेट भरना है तो उसे रूसी भाषा
बोलनी होगी एवं रूस के कानूनों
का पूरी तरह पालन करना होगा
... अगर
उन्हें शरिया कानून चाहिए तो
मेरी उन्हें सलाह है की वो
किसी ऐसे देश में चले जाएँ
जहाँ उनके इस कानून को मान्यता
मिली हो ...'
राष्ट्र
के नाम पर कुछ ऐसी ही दृढ़ता
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी में भी दिखाई देती है ...
जहां
देश में कोई अल्पसंख्यक या
बहुसंख्यक नहीं है ...
जहां
देश एक है तो कानून भी एक ...
जहां
देश की राष्ट्रभाषा सर्वोपरि
है ... जहां
राष्ट्रवाद ही धर्म है ...
पुतिन
के लिए राष्ट्रवाद सबसे बड़ा
धर्म है ...
दरअसल
हिंदी में बोलना महज भाषाई
ज्ञान की चर्चा परिचर्चा नहीं
है ....
राष्ट्रभाषा
होने की वजह से हिंदी भारत की
पहचान है ...
और
ये पहचान महज इसीलिए धूमिल
हो जाती है क्योंकि ये मल्टीनेशनल
कंपनियों की भाषा नहीं है ...
अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर हिंदी की पहचान भारतीयों
की वजह से ही हो सकती है और ऐसे
में देश के प्रधानमंत्री का
हिंदी में बात करने का फैसला
भले ही दुभाषिए की मौजूदगी
को आवश्यक बना देता हो लेकिन
भारत की अलग पहचान को भी कायम
रखता है ....
इससे
राष्ट्रवाद की भावना और गहरी
हो जाती है ...
मोदी
का ये फैसला भी राष्ट्रवाद
से जुड़ा नज़र आता है ...
मोदी
की ट्रेनिंग आरएसएस में हुई
है ...आरएसएस
की प्रार्थना है ...
नमस्ते
सदा वत्सले मातृभूमे ...
इनके
लिए मातृभूमि पूजनीय होती है
...राष्ट्रवाद
सबसे ऊपर होता है ...
मोदी
के इस फैसले ने पूर्व प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपेयी की याद
दिला दी है ....
वाजपेयी
ने युनाइटेड नेशंस की बैठक
में हिंदी में भाषण देकर इतिहास
बना दिया था ...
अटल
बिहारी वाजपेयी भारत के ऐसे
एकमात्र नेता हैं जिन्होंने
संयुक्त राष्ट्र संघ में जब
कभी भी अपना भाषण दिया तो हमेशा
हिंदी का ही प्रयोग किया...
अपने
एक इस फैसले से मोदी ने ना सिर्फ
अटल की याद दिला दी है बल्कि
खुद को भारत का पुतिन भी साबित
कर दिया है ...
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