नरेंद्र
मोदी की शख्सियत से अब पूरा
देश वाकिफ हो चुका है ...
मोदी विदेशी मीडिया
में भी छा चुके हैं और भारत
में हुए सत्ता परिवर्तन पर
दुनिया भर की नज़रें टिकी हुई
हैं .... ना
सिर्फ देश के लोग दुनिया के
अलग अलग मुल्क भी भारत के अगले
कदम को लेकर कयास लगा रहे हैं
... ऐसे
में मोदी ने भी अभी से पड़ोसी
मुल्कों से संबंधों को लेकर
अपनी रणनीति साफ करनी शुरु
कर दी है ... शपथ
ग्रहण समारोह में SAARC
देशों के नेताओं
को निमंत्रण भेजना भी इसी
रणनीति का हिस्सा है ...
26 मई को शाम 6
बजे जब नरेंद्र
मोदी जब प्रधानमंत्री पद की
शपथ लेंगे तब वहां सार्क देशों
के प्रतिनिधि भी नज़र आएंगे
... ये महज़
एक नई परंपरा की शुरुआत नहीं
है बल्कि ये शपथ ग्रहण के बहाने
नए रिश्तों के शुरुआत की कवायद
है ... पाकिस्तान,
चीन,
बंगलादेश,
भूटान,
श्रीलंका और
मालदीव जैसे देशों को आमंत्रित
करने के पीछे मोदी का नजरिया
बिल्कुल साफ है...मोदी
ये संदेश देना चाहते हैं कि
वो पड़ोसियों से बेहतर रिश्तों
की शुरुआत करेंगे...
देश
में धाक जमाने के बाद अब मोदी
की नजर दुनिया के उन गिने-चुने
कामयाब नेताओं की फेहरिस्त
में शामिल होने की है....जिन्होंने
अपनी कुशलता और नेतृत्व क्षमता
के जरिए दुनिया भर के लिए एक
मिसाल कायम की...फिर
चाहे वो पंडित नेहरू का
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की अगुआई
करने का इतिहास रहा हो...इंदिरा
गांधी का आयरन लेडी का व्यक्तित्व,
जब उन्होंने अमेरिका
की चुनौति को भी सीधा स्वीकार
किया, या फिर चर्चिल
और लिंकन जैसी अंतर्राष्ट्रीय
स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाली
शख्सियतों का...मोदी
की नजर अब वहां है जहां से
इतिहास में सुनहरे अध्याय
लिखने का दायरा शुरु होता
है...
दरअसल
मोदी जानते हैं कि देश को अगर
विकास के रास्ते पर ले जाना
है तो पड़ोसी मुल्कों के साथ
बेहतर रिश्ते जरूरी है...सीमापार
अगर तनाव की बजाय सद्भाव होगा
तो सरकार की ऊर्जा सकारात्मक
कामों में लगेगी...मोदी
की महत्वाकांक्षा दरअसल देश
की सीमाओं के पार जाने की है
जिसकी शुरुआत वो सार्क देशों
से कर रहे हैं..कुछ
मामलों में मोदी पूर्व
प्रधानमंत्री अटल बिहारी
वाजपेयी के सिद्धातों का
अनुसरण भी कर रहे हैं...जिन्होने
प्रधानमंत्री रहते हुए पड़ोसी
देशों के साथ रिश्ते सुधारने
के लिए ऐतिहासिक पहल की थी...फिर
चाहे वो लाहौर तक की बसयात्रा
रही हो या फिर आगरा शिखर
सम्मेलन....ये और बात
है कि ये दोनों कोशिशों पाकिस्तान
के भीतर चल रहे आंतरिक उठापटक
का शिकार हो गईं...लेकिन
अटल जी की इस शुरुआत ने कहीं
ना कहीं एक बेहतर रिश्तों के
सिलसिले की नींव जरूर डाली
थी...ये और बात है कि
आगे की सरकारें इस सिलसिले
को कायम नहीं रख पाईं
बात
अटलजी की हो रही है तो उस दौर
को भी याद करना जरूरी है जब
जनता पार्टी की सरकार में
अटलजी विदेश मंत्री हुआ करते
थे और विदेश मंत्री रहते हुए
अटलजी ने कई देशों के साथ रिश्ते
बेहतर बनाने में अहम रोल अदा
किया था...फिर चाहे
वो वीजा नियमों में ढील देने
का मामला रहा है या फिर खाड़ी
देशों से रिश्ते मजबूत करने
का...जिसके परिणामस्वरुप
हजयात्रा में सहूलियतें बढ़
गईं थी...इसके पहले
भी अटलजी ने भारत चीन युद्ध
के बाद चीन से रिश्ते सुधारने
की पहल की थी...
नरेन्द्र
मोदी विदेश नीति के मामले में
अटलजी के सिद्धांतों पर चलते
हुए वैश्विक तौर पर अपनी शख्सियत
की एक नई लकीर खींचना चाहते
हैं...चुनावों के
दौरान मोदी ने सार्वजनिक मंचों
से कई बार भारत की विशाल आबादी
की दलीलें रखते हुए ये सवाल
उठाया है कि अगर चीन अपने
मैनपावर के आधार पर विकसित
देशों की कतार में खड़ा हो
सकता है तो भारत क्यों नहीं...मोदी
ने कई बार कमजोर विदेश नीति
को लेकर भी तंज कसा है...
अब
सत्ता में मोदी हैं तो यकीनन
उनकी निगाह इन तमाम मसलों पर
है...मोदी भारत को
उस दौर में ले जाना चाहते हैं
जब भारत ने शीतयुद्ध के दौर
में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का
नेतृत्व किया था और दक्षिण
एशिया में एक बडे नेता की भूमिका
में खड़ा रहा था...तो
वहीं 1971 में इंदिरा
गांधी के वक्त पूर्वी पाकिस्तान
को जीतने के बाद भी जियो और
जीने दो की नीति पर अलग देश का
निर्माण कराकर इंदिरा गांधी
ने एक मिसाल दुनिया के सामने
और पेश की थी...यकीनन
मोदी का एजेंडा विकास के
रास्ते...हिन्दुस्तान
के श्रम का इस्तेमाल हिन्दुस्तान
के लिए करके...दुनिया
के सामने देश की प्रतिभा का
लोहा मनवाने का है...जिसकी
अग्रणी भूमिका में वो खुद आना
चाहते हैं....ताकि
मोदी का कार्यकाल सदियों के
लिए एक नजीर बन जाए...मोदी
की ये शुरुआत इसी का हिस्सा
है
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