
बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी अपनी ही पार्टी के लिए बीते कुछ समय से मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं ... इन सबकी शुरुआत उसी वक्त से हो चुकी है जब से नरेंद्र मोदी का नाम आगे आया है ... लेकिन इस वक्त जब भारतीय जनता पार्टी मोदी के सहारे 2014 में मिशन 272 + में लगी हुई है तो आडवाणी की तरफ से हो रहा ये विरोध अपने चरम पर है ...
अपनी मौजूदा सीट गांधीनगर छोड़ भोपाल से चुनाव लड़ने को लेकर आडवाणी की जिद ने एक बार फिर ये बात साबित कर दी है कि आडवाणी और मोदी के बीच सबकुछ ठीक नहीं है ... दुनिया को दिखाने के लिए भले ही दोनों नेता सार्वजनिक रूप से कई बार गलबहियां कर चुके हों लेकिन आडवाणी, नरेंद्र मोदी को लेकर no-trust syndrome से गुज़र रहे हैं... आडवाणी गांधीनगर से लड़े तो उन्हें हारने का डर है, और अगर वो एक बार हार गए तो उनका पॉलिटिकल करियर ख़त्म हो जाएगा ... इसीलिए वो, किसी भी कीमत पर जीवन के इस पड़ाव पर रिस्क नहीं लेना चाहते ... भोपाल से चुनाव लड़ना उन्हें सुरक्षित लग रहा है क्योंकि शिवराज सिंह चौहान और लाल कृष्ण आडवाणी के बीच अच्छे संबंध हैं ... आडवाणी को शायद ये भरोसा है कि शिवराज उनकी जीत सुनिश्चित करेंगे ... और आडवाणी विरोधी खेमा वहां साज़िश नहीं कर पाएगा ... लिहाजा आडवाणी टिकट के मुद्दे पर इतने अड़ियल नज़र आते रहे...

आडवाणी जिस no-trust syndrome से गुज़र रहे हैं वो एक दिन में नहीं बना है .. दरअसल नरेंद्र मोदी से लेकर मौजूदा वक्त में बीजेपी के बड़े पदों पर काबिज तमाम बड़े नेता, 1991 में आडवाणी के इशारे पर चलते थे... लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं ... आज वही नेता आडवाणी के भाग्य विधाता की भूमिका में हैं ... अब ये नेता तय कर रहे हैं, कि बीजेपी में बुजुर्ग नेताओं की भूमिका क्या होगी ... यही वजह है कि आज आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और सुषमा स्वराज जैसे नेता कहीं न कहीं खुद को असुरक्षित और अपमानित महसूस कर रहे हैं। पिछले एक साल से पार्टी नेतृत्व अपने ही बुजुर्ग नेताओं के खिलाफ़ ख़बरें लीक करता रहा है, और उन्हें अपमानित करता रहा है... यही कारण है, कि पूरी की पूरी पार्टी दो खेमों में दिख रही है और बीजेपी के बुजुर्ग नेताओं में पार्टी के मौजूदा नेतृत्व पर भरोसे की कमी दिखाई दे रही है ... कुछ दिन पहले ख़बरें पार्टी की तरफ़ से लीक हुई थी, कि संघ चाहता है, कि बुजुर्ग नेताओं को लोकसभा चुनाव से अलग किया जाए और उन्हें राज्यसभा में भेजा जाए... इसी के बाद आडवाणी और जोशी जैसे नेताओं को किनारे करने की तैयारी की जा रही थी .. हालांकि बाद में संघ परिवार भी एक कदम पीछे हटा और जोशी को कानपुर से और आडवाणी को गांधीनगर से टिकट दिया गया...
बीता हुआ तकरीबन एक साल बीजेपी में काफी उथल-पुथल वाला रहा है ... बीजेपी ने नेतृत्व परिवर्तन देखा है .... बुजुर्ग और पहली पंक्ति के नेता अब हाशिए पर हैं, मोदी, राजनाथ और जेटली सेंटर स्टेज पर आ चुके हैं ... इस दौरान आडवाणी कई बार खुल अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं .... ये बता चुके हैं कि सत्ता के लिए पार्टी सिद्धांतों से समझौता कर रही है ... नाराज़ आडवाणी पार्टी नेतृत्व को चिट्ठी तक लिख चुके हैं .. कि पार्टी नेतृत्व जिस तरीके से काम कर रहा है, वो न तो संघ की विचारधारा से मेल खाता है, और न ही पार्टी के सिद्धांत से.. यही वजह है कि पार्टी नेतृत्व ने भी ऐसा कोई भी मौका नहीं छोड़ा है जब वो आडवाणी को अपमानित कर सके । दरअसल जब सत्ता पाने का लक्ष्य लेकर राजनीति की जाती है तो महात्वाकांक्षाओं को लेकर लड़ाई होनी स्वाभाविक है .. ये पार्टी के अंदर भी है और पार्टी के बाहर भी .. पार्टी नेतृत्व को लगता है कि अगर इस बार सत्ता सुख नहीं मिला तो फिर अगले 10 साल तक के मुश्किल हो जाएगी लिहाजा पार्टी में नेताओं के बीच महात्वाकांक्षा की लड़ाई हो रही है । चाहे इसके लिए पार्टी को अपने सिद्धांतों की तिलांजलि ही क्यों ना देनी पड़े ...

ये सच है कि बीजेपी में सिद्धांतो से परे हटने की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में ही शुरु हो चुकी थी ... जब नेशनल डेमोक्रैटिक अलाएंस बना था लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने एनडीए को बचाने के लिए आरएसएस और भगवा ब्रिगेड को खुद पर कभी हावी नहीं होने दिया ... इसी वजह से अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे नेता रहे जिन्हें भगवा ब्रिगेड के बाहर भी स्वीकार किया गया .. बीजेपी में जो political untouchability थी वाजपेयी जी ने उसे दूर कर दिया था.. उन्हें राजनीतिक विरोधाभासों को मैनेज करने में महारत हासिल थी... जिसकी वजह से वो 24 समर्थक पार्टियों के साथ भी सरकार चलाने में कामयाब रहे थे ... लेकिन अब ना तो बीजेपी में वैसा कोई नेता है ना ही अब वैसे सियासी हालात हैं .... शायद यही वजह है कि पार्टी में चल रही विचारधारा और महात्वाकांक्षा की लड़ाई हर बार सतह पर आ जाती है और ऐसे में ये भी तय है कि फिलहाल देश में चल रही मोदी की लहर पर बह कर जो नेता पार्टी की तरफ आ रहे हैं वही अगर लहर खत्म हो जाती है तो उल्टे पैर लौट भी सकते हैं ... ऐसे में पार्टी का अंतर्विरोध पार्टी को कहां ले जाएगा ये देखने वाली बात होगी ...
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