लोकतंत्र का महापर्व जब भी नज़दीक आता है, तो रैलियों का शोर और सियासदानों का शो अपने चरम पर होता है ... देश के सभी प्रमुख राष्ट्रीय दल अपनी ताक़त की नुमाइश शुरु कर देते हैं ... इस नुमाइश के लिए चुन चुन कर शहरों में रैलियां आयोजित की जाती हैं .. और इन रैलियों में लाखों लोग जुटाए जाते हैं ... अपनी रैली से ज्यादा से दूसरों की रैलियों में जुट रही भीड़ पर चर्चा की जाती है और फिर उस भीड़ में सेंधमारी की रणनीति तैयार की जाती है ....
सचमुच रैलियों में भीड़ का जुटना और जुटाना भी राजनीति की रणनीति है ... अब इसके लिए वादे करने पड़ें, गर्व की बात की जाए, समभाव,समरसता की याद दिलाई जाए या फिर प्रखर राष्ट्रवाद और बेहतर गवर्नेंस के दावे किए जाएं ... हर राजनीतिक पार्टी का एक ना एक फॉर्मूला होता है जिसपर पार्टियां आगे बढ़ रही है ...
बीजेपी उत्तर प्रदेश में अपनी खोई ज़मीन को हासिल करने के लिए...और नरेंद्र मोदी को 7 रेसकोर्स रोड तक पहुंचाने के लिए विजय शंखनाद रैली का सहारा ले रही है....यूपी में अब तक नरेंद्र मोदी 6 विजय शंखनाद रैली कर चुके हैं...इन रैलियों में जुटी भीड़ से गदगद...बीजेपी अब ब्रह्मास्त्र का सहारा लेने जा रही है...2 मार्च को लखनऊ में विजय शंखनाद महारैली करने जा रही है...लखनऊ के रमाबाई मैदान में हो रही महारैली में 2 या 4 लाख नहीं...बल्कि 15 लाख कार्यकर्ताओं के जुटने का दावा किया जा रहा है ...बीजेपी ने भी महारैली के लिए महाइंतजाम किए हैं... पार्टी की तरफ से मोदी को एक सुपरमैन और ड्रीम सेलर के रूप में प्रोजेक्ट किया जा रहा है .... ये बताने की कोशिश की जा रही है कि मोदी के हर मर्ज की दवा हैं ... और मोदी जब भी अपनी रैलियों को संबोधित करते हैं तो प्रखर राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, बेहतर गवर्नेंस और ट्रांसपेरेंसी की बात ज़रूर करते हैं ...
मोदी की रैलियों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की रैलियां भी हो रही हैं... और दोनों हीं पार्टियों के बीच इन रैलियों में दावे, वादों और आरोपों की झड़ी ज़रूर लगती है ..इस सबके बीच समाजवादी पार्टी अपने वादों का पुलिंदा दिखाकर लोगों को अपने खेमे मे लाने की कोशिश करती है ... मुफ्तखोरी के मैनिफेस्टो के साथ ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने की कोशिश की जाती है ... जनता को अपने पाले में लाने के लिए मुफ्त बिजली, पानी, दवाई, पढ़ाई, कर्ज माफी का लॉलीपॉप दिया जाता है ... केस वापस ले लेने के वादे किए जाते हैं, लैपटॉप और टैबलेट के जरिए तरक्की के रास्ते पर ले जाने की तस्वीर दिखाई जाती है ..
बीएसपी प्रखर राष्ट्रवाद और मुफ्त की सुविधाओं की बात नहीं करती .. बीएसपी का फॉर्मूला सेल्फ प्राइड से जुड़ा है .. बीएसपी उस बहुत बड़े वर्ग को उनका सम्मान दिलाने की बात करती है जिसे समाज में काफी समय तक उपेक्षित रखा गया.... बीएसपी दलितों को सम्मान देने की बात कहती है लेकिन समाज के अगडी जाति के गरीब वर्ग के लिए भी अपनी फिक्र जताती है ...
भ्रष्टाचार, महंगाई जैसे मुद्दों पर बैकफुट पर जा चुकी कांग्रेस अब, मैं नहीं हम के फॉर्मूले पर आगे बढ़ रही है.. कांग्रेस सबको साथ लेकर चलने के वादे कर रही है.. जिसमें वर्ग विशेष की चर्चा नहीं है .. लेकिन समभाव, समरसता समायोजन, समन्वय और सहअस्तित्व का सपना ज़रूर है ....
सचमुच रैलियों में भीड़ का जुटना और जुटाना भी राजनीति की रणनीति है ... अब इसके लिए वादे करने पड़ें, गर्व की बात की जाए, समभाव,समरसता की याद दिलाई जाए या फिर प्रखर राष्ट्रवाद और बेहतर गवर्नेंस के दावे किए जाएं ... हर राजनीतिक पार्टी का एक ना एक फॉर्मूला होता है जिसपर पार्टियां आगे बढ़ रही है ...




फॉर्मूला चाहे जो भी हर राजनीतिक दल का एक ही फंडा, एक ही मोटिव है कि रैलियों में भीड़ जुटे ... उनका शक्ति प्रदर्शन कामयाब हो .. और भीड़ वोट बैंक में तब्दील हो जाए... तो ऐसे में जनता के सामने सारे फॉर्मूले मौजूद हैं जो फॉर्मूला कारगर लगे उसे जनता अपना सकती है ...
Sir, Blog ka vishay sahi hai, Aap ne likha bhi achcha hai.
जवाब देंहटाएंMere khyaal mein, elections ke kareeb rallies karna, imtehaan
जवाब देंहटाएंke bilkul paas aa jaane par, parhai karne ke samaan hai. Assal mein
to wahi parhai kaam aati hai jo saal bhar ki jaaye
Mere khyaal mein, elections ke kareeb rallies karna, imtehaan
जवाब देंहटाएंke bilkul paas aa jaane par, parhai karne ke samaan hai. Assal mein
to wahi parhai kaam aati hai jo saal bhar ki jaaye