सियासत
में सत्ता के लिए तमाम हथकंडे
अपनाए जाते हैं ...
चाहे
वो विरोधियों पर वार हो या
अपनी जय जयकार ...
लेकिन
सियासत के मैदान में उतरी
पार्टियां दिन के साथ ही अपनी
नीतियां बदलने लगें तो ये
कितना सही है ....
नेता
ज़रूरत के हिसाब से रंग बदलते
हैं ... दल
भी बदल लेते हैं ऐसे में उनकी
नीतियों की बात तो नहीं की जा
सकती लेकिन एक विचारधारा को
लेकर राजनीति में उतरीं
पार्टियां अगर सत्ता के लिए
सियासत में अपनी विचारधारा
से हाथ धो लें तो ऐसा करना कहां
तक उचित है ...
पार्टी
ने अपने कैंपेन की शुरुआत
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर की
...
कांग्रेस
को भ्रष्टाचार में गले तक डूबा
हुआ बताया नरेंद्र मोदी ने
हर रैली में इस मुद्दे को उठाया
...
लेकिन
जहां इन रैलियों में कोलगेट
की बात होती है तो सुविधा के
मुताबिक ऑयल,
नैचुरल
गैस,
नैचुरल
रिसोर्सेज़ और स्पेक्ट्रम
से जुड़े घोटालों पर चर्चा
नहीं की जाती ...
ऐसा
क्यों होता है ये सियासतदान
बखूबी समझते होंगे ...
अब
ये मोदी ही बता पाएंगे कि आखिर
क्यों भ्रष्टाचार के मुद्दे
पर आक्रामक हुए मोदी के भाषणों
में अदानी समूह और अंबानी का
नाम नहीं आता ...
जबकि
पूरा देश जानता है कि इन व्यापारिक
घरानों पर किस हद तक घोटालों
के आरोप लगते रहे हैं ...
भारतीय
जनता पार्टी में भी आजकल ना
सिर्फ मुद्दों बल्कि विचारधारा
को लेकर भी इतना भटकाव नज़र
आ रहा है कि खुद बीजेपी के
कार्यकर्ता भी समझ नहीं पा
रहे होंगे कि पार्टी आखिरकार
किस ideology
की
बात करती है ...

भ्रष्टाचार
के मुद्दे पर आगे बढ़ रही बीजेपी
को अचानक येदीयुरप्पा वापस
अच्छे लगने लगते हैं ...
वही
येदीयुरप्पा जिन्हें करप्शन
के फेर में फंसने पर पार्टी
छोड़नी पड़ी थी ...
लेकिन अब वही येदीयुरप्पा पार्टी को नई सोच और नई उम्मीद देते दिॆखाई दे रहे हैं
सत्ता
किसी कीमत पर पाने को तैयार
बीजेपी को अब ना तो जयललिता
से दिक्कत है ना ही करुणानिधि
से...
जब
जयललिता को NDA
के
खेमे में लाने की कोशिशें
नाकाम हो गईं तो पार्टी करुणानिधि
से नजदीकियां बढ़ा रही है ...
जयललिता
और करुणानिधि और उनकी पार्टी
पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों
को शायद पार्टी भूल गई है या
फिर सत्ता के लिए भुला दिया
है ...
दरअसल
चाल,
चरित्र
और चेहरे के Contradiction
को
लेकर बीजेपी में इतना घमासान
मचा हुआ है कि कैंपेन की दिशा
ही बदलती जा रही है ...
चुनाव
आते-आते
NDA
की
जो तस्वीर उभर रही है वो कई
सवाल खड़े कर रही है ...
बीजेपी
को रामविलास पासवान के रूप
में राम भी मिल गए हैं ...
वही
राम विलास पासवान जिन पर स्टील
मंत्री रहते हुए बोकारो स्टील
प्लांट में भर्ती में अनियमितता
के आरोप लगे हैं .....
वही
रामविलास पासवान जो पिछले
चुनाव में अपनी सीट भी नहीं
बचा पाए थे लेकिन बीजेपी को
लगता है कि ये राम ही उसकी नैया
पार लगाएंगे ...
वही
राम विलास पासवान जो गुजरात
दंगों के मुद्दे पर मोदी का
विरोध करते हुए बीजेपी से एक
बार किनारा भी कर चुके हैं ...
सिद्धांत
और आदर्श की दुहाई देने वाले
नरेंद्र मोदी का मंच से परोसा
जाने वाला राजनीति का आदर्शवाद
उत्तर प्रदेश में हाशिए पर आ
गया दिखता है...
बीजेपी
को अब बलरामपुर से समाजवादी
पार्टी के टिकट पर 2009
में
लोकसभा जा चुके बृजभूषण शरण
सिंह भी प्यारे लग रहे है ...
बृजभूषण
शरण सिंह का टाडा के तहत जेल
की हवा खाकर आना भी बीजेपी को
बुरा नहीं लग रहा...
सियासत
में बाहुबल की जरूरत तो होती
ही है शायद बीजेपी बृजभूषण
शरण सिंह को पार्टी में लाकर
उत्तर प्रदेश में बाहुबलियों
के लिए अपने लगाव का इतिहास
दोहरा रही है ..
बीजेपी
इससे पहले उदित राज को तो पार्टी
में शामिल कर ही चुकी है ...
वही
उदित राज जो कभी बीजेपी के धुर
विरोधी माने जाते थे...
जो
आरएसएस के ब्राह्मणवादी सोच
पर कई बार हमला बोल चुके हैं....
वही
उदित राज जो हिंदू से बौद्ध
और ईसाई धर्म में धर्मांतरण
करवाने के कार्यक्रम में भी
मौजूद रहे हैं ..
अब
संघ को उदित राज से दिक्कत हो
या ना हो लेकिन बीजेपी के
रणनीतिकारों को दलित वोटबैंक
में सेंधमारी के लिहाज से कोई
दिक्कत नहीं है
राष्ट्रीय
स्वंयसेवक संघ की विचाराधारा
प्रखर राष्ट्रवाद,
सांस्कृतिक
राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की
रही है....इसी
विचारधारा को आगे बढ़ाने के
मकसद से आरएसएस ने पॉलिटिकल
विंग को खड़ा किया था....जो
अब बीजेपी के रुप में सबके
सामने है...लेकिन
क्या बीजेपी आरएसएस के उसी
एजेंडे पर आगे बढ़ रही है या
फिर सत्ता के फेर में अपने
सिद्धांत,
अपनी
विचारधारा को भुला बैठी है ?
Bahut Barhiya!
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