वरिष्ठ
और जिम्मेदार कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी के आरक्षण को लेकर दिए बयान से भले
ही उनकी पार्टी के लोग इत्तेफाक नहीं रखते हों लेकिन इस बयान ने आरक्षण के मसले पर
एक बार फिर बहस छेड़ दी है... एक बार फिर बहस हो रही है कि संविधान ने जिन मुद्दों
को ध्यान में रखते हुए आरक्षण की वकालत की थी क्या अब भी वो मुद्दे प्रांसगिक हैं
...
दरअसल
ये बहस बहुत पुरानी है ... समाज में गैर बराबरी खत्म करने, सामाजिक आर्थिक और शैक्षिक रूप से
पिछड़े हए लोगों को empower करने
के लिए जिस आरक्षण व्यवस्था की शुरुआती की गई थी अब उसी व्यवस्था की वजह से धीरे-धीरे
एक नई तरह की विसंगति को बढ़ावा मिलता दिखाई दे रहा है ...
आज़ादी
के बाद भारतीय संविधान में समाजिक तौर पर पिछड़े लोगों को आगे लाने के मकसद से
आरक्षण का प्रावधान शामिल किया गया था... ये प्रावधान भी रखा गया कि हर दस साल पर
हालात की समीक्षा की जाएगी और उसके बाद आरक्षण की व्यवस्था पर पुनर्विचार किया
जाएगा ... लेकिन इसकी समीक्षा आज तक नहीं हुई, बल्कि समय गुजरने के साथ आरक्षण का दायरा बढ गया...
इस
आरक्षण की व्यवस्था की वजह से पिछले कुछ दशक में समाज में एक नया कुलीन वर्ग पैदा
हुआ है .. ये वो लोग हैं जिन्हें आरक्षण की व्यवस्था से सबसे ज्यादा फायदा हुआ...
ये लोग आर्थिक,सामाजिक और शैक्षिक रूप से काफी आगे
निकल चुके हैं ... सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे
ही लोगों के लिए 1992 में पहली बार क्रीमी लेयर शब्द का
इस्तेमाल किया था ... सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि क्रीमी लेयर यानि संवैधानिक
पद मसलन प्रेसीडेंट, सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट के जज और
ब्यूरोक्रेसी, पब्लिक सेक्टर कर्मचारी सेना और
अर्धसैनिक बल में कर्नल से ऊपर का रैंक पा चुके बैकवर्ड क्लास के लोगों के बच्चों
को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए... इसके अलावा आर्थिक आधार पर भी क्रीमी लेयर तय किया
गया ... इसके मुताबिक जिस परिवार की आय तीन साल लगातार 6 लाख सालाना से ज्यादा है वो सामाजिक
या शैक्षिक रूप से भी पिछड़े नहीं माने जाएंगे ...उन्हें क्रीमी लेयर माना जाएगा
...और ऐसे परिवारों के बच्चों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा ...
हालांकि
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बार-बार कहे जाने के बाद भी क्रीमी लेयर का फॉर्मुला लागू
करने से राजनीतिक दल घबराते हैं ... राजनीति से लेकर सरकारी पदों पर एससी/एसटी, ओबीसी के अंदर के कुलीन वर्ग के लोगों
का कब्जा है ... और ऐसे में वो लोग बिल्कुल नहीं चाहते कि क्रीमी लेयर फॉर्मूला
लागू हो और एससी/एसटी और ओबीसी वर्ग के उन लोगों को फायदा होने लगे जो वाकई बेहद
पिछड़े हुए हैं ...

ऐसे
में अगर कांग्रेस पार्टी के नेता जनार्दन द्विवेदी सही मायने में जाति के आधार पर
आरक्षण खत्म करने के मसले पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस करना चाहते हैं तो इस पर
बयानबाजी करने के बजाय सभी राजनैतिक दलों को गंभीरता से सोचना चाहिए ...
ये
भी एक सच है कि दुनिया के जिस किसी मुल्क
में परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से रिजर्वेशन की व्यवस्था लागू हुई है वो देश
विकास की दौड़ में आगे बढ़ने के बदले पिछड़ते ही गए हैं ... आज जितने भी विकसित या
विकासशील देश हैं उनमें आरक्षण की व्यवस्था नहीं है ... उदाहरण के तौर पर हमारे
सामने अमेरिका, चीन और रूस सरीखे देश हैं .. और अगर परिस्थितियों के हिसाब से
भारतीय संविधान में सैकड़ों संशोधन किए जा सकते हैं तो फिर आरक्षण के सवाल पर
राष्ट्रीय बहस चलाना कोई अपराध नहीं होगा ..

इतिहास
गवाह है कि किसी जाति या वर्ग को एक लंबे अरसे तक उसके हक़ और हुकूक से मरहूम रखना
सामाजिक असंतोष और गृहयुद्ध को बढ़ावा देता है फिर चाहे वो बोलशेविक क्रांति हो,
फ्रेंच रिवॉल्यूशन हो, Chinese
war of independence हो या फिर freedom Movement.. ये सब उदाहरण हमारे सामने हैं इसीलिए
अब समय रहते भारत की सभी जिम्मेदार पार्टियों और संस्थाओं को आरक्षण व्यवस्था पर
गंभीरता से मंथन करना चाहिए ...
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