उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके से आप भली
भांति वाकिफ होंगे .. इसलिए..
क्योंकि यहां वाराणसी है, क्योंकि यहां कुशीनगर है। मुरली मनोहर जोशी, योगी आदित्य
नाथ जैसे प्रभावशाली लोग यहां से सांसद हैं । पूर्वांचल की और भी कई पहचान हैं, पूर्वांचल सियासत के हिसाब से
काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस इलाके में तकरीबन 32 लोकसभा और करीब 150 विधानसभा
सीटें आती हैं। पूर्वांचल ने देश को लाल बहादुर शास्त्री और चंद्रशेखर के रुप में
दो प्रधानमंत्री भी दिए हैं । कला संस्कृति और धरोहरों से तो ये इलाका संपन्न है
ही आध्यात्म और ज्ञान भी इस इलाके की पहचान रही है। पूर्वांचल इसलिए भी अहम है
क्यों सोशलिस्ट आंदोलन की शुरुआत यहीं से हुई। 1857 में मेरठ में हुई म्युटिनी के
तकरीबन एक महीना पहले बलिया के चित्तु पांडे ने बलिया को अंग्रेजी हुकूमत से आज़ाद
घोषित कर दिया था ... लेकिन शानदार इतिहास कभी भी इसकी गारंटी नहीं देता कि भविष्य
भी उतना ही रौशन होगा और पूर्वांचल को भी यहां का शानदार इतिहास बचा नहीं पाया है
।
यूपी में क्षेत्रीय शक्तियों के उभार के बाद
पूर्वांचल के साथ सबसे ज्यादा धोखा हुआ है। प्रदेश में लंबे वक्त कर कांग्रेस की
सरकार रही है और इस दौरान तीन तरह के फंड रिलीज किए जाते थे, पूर्वांचल विकास निधि,
पर्वतीय
विकास निधि और बुंदेलखंड विकास निधि... नारायण दत्त तिवारी के बाद उत्तर प्रदेश की
सत्ता कभी भी कांग्रेस के हाथ नहीं आई ... नतीजा ये हुआ कि राज्य के विभाजन के बाद
पर्वतीय विकास निधि की जरूरत नहीं पड़ी तो वहीं पूर्वांचल विकास निधि और बुंदेलखंड
विकास निधि रिलीज जरूर किए जाते रहे लेकिन इसे किसी और मद में इस्तेमाल किया जाता
रहा... इसे भी एक संयोग कहेंगे कि बीते पंद्रह साल में उत्तर प्रदेश के सभी
मुख्यमंत्री पश्चिमी यूपी से हुए हैं ... और विकास की राह पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश
सूबे के बाकी हिस्सों से आगे है ... एक विडंबना ये भी है पूर्वांचल में आने वाला
कुशीनगर बौद्ध सर्किट का हिस्सा है, लिहाजा यहां बाहरी देशों से भी धन की आमद होती
है, ताकि इसका विकास हो सके .. विकास के नाम पर पांच सितारा होटल तो बन चुके हैं,
इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने की बात की जा रही है लेकिन क्या वहां रहने वाले लोगों की
जिंदगी में कोई फर्क आया ?
अफसोस इस बात का है कि अब पूर्वांचल के नेताओं की कोई आवाज़ नहीं रही.. ये नेता स्वान्त: सुखाय की विचारधारा अपना चुके हैं । Freedom Movement, Socialist Movement को दिशा और गति देने वाली ये ज़मीन अब पूर्वांचल
के नेताओं की वजह से Cast और Communal Politics की नर्सरी बन
चुकी है ...आज भी नेता जब यहां आते हैं तो उन्हें अनुसूचित जाति, जनजाति की बातें
करना ज़रूरी लगता है... लंबे वक्त से यहां की अवाम जाति, धर्म और संप्रदाय की
बातें सुनती आई है ...राम मंदिर समेत तमाम धर्म के नाम पर चले आंदोलनों ने यहां की
सामाजिक जागरूकता खत्म कर दी है... नतीजा ये हुआ है कि यहां के लोग अपने वाजिब हक़
और हुकूक की बातें भूल कर जाति और संप्रदाय रूपी अफीम के आदी हो चुके हैं... मौजूदा हालात ये हैं कि पूर्वांचल की जनता अपने
खुद की मुश्किलों तक के लिए एकजुट नहीं हो पाती ..
पूर्वांचल ने देश की सियासत को बहुत कुछ दिया
है...सोशलिस्ट आंदोलन की शुरुआत अगर पूर्वांचल से हुई तो कई बड़े वामपंथी नेता भी
पूर्वांचल से रहे...किसी जमाने में गेंदा सिंह, उग्रसेन,
राजमंगल
पांडे, रामायण राय, जनेश्वर मिश्रा जैसे नेता राष्ट्रीय
फलक पर पूर्वांचल का गौरव बढ़ाते रहे...तो पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर, पूर्व
मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी,
और
पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह जो कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं...पूर्वांचल
से ही ताल्लुक रखते हैं...
पूर्वांचल, सियासत की सबसे उपजाऊ भूमि मानी जाती है...कभी कास्ट पॉलिटिक्स..तो
कभी धर्म के नाम पर इस इलाके के लोगों को बांटा जाता रहा है....सिर्फ विकास के
झूठे सपने दिखाए जाते रहे हैं.... उत्तर प्रदेश के नक्शे में दिखने वाले इन पूर्वी
जिलों का अतीत सामाजिक और सांस्कृतिक लिहाज से खासा समृद्ध जरूर है लेकिन विकास की
कसौटी पर ये आज भी खरा नहीं उतर पाया...स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार,
औद्योगीकरण,
बुनियादी
ढांचे का विकास जैसे तमाम मुद्दे जो किसी भी क्षेत्र के विकास की पहचान होते हैं
पूर्वांचल उनसे कोसों दूर नजर आता है... इस इलाके की पहचान आज भी वही है जो दशकों
पहले थी...बदहाल, बेहाल, बीमार पूर्वांचल की... हर चुनाव से पहले इस क्षेत्र के पिछड़ेपन
को दूर करने के लिए बड़े-बड़े वायदे किए जाते हैं लेकिन चुनाव खत्म होते ही ये सभी
वायदे सियासी दलों के मैनिफेस्टो तक सीमित रह जाते हैं ।
पूर्वांचल को करीब से जानने वाले लोग जानते
होंगे कि उत्तर प्रदेश जिसे Bowl
of Sugar कहा जाता है, उसमें चीनी का सबसे ज्यादा उत्पादन पूर्वांचल में ही
होता था... ये ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब प्रदेश के सारे जिलों में एक district cane officer होता था, तो चीनी
मिलों की संख्या के हिसाब से देवरिया में दो डीसीओ नियुक्त किए जाते थे, एक पडरौना
में बैठता था तो दूसरा देवरिया में । अब हालत ये है कि राजनीति की वजह से ज्यादातर
चीनी मिलें बंद हो चुकी हैं या निजी हाथों में बिक चुकी हैं ।
पूर्वांचल के ज्यादातर जिलों में फैला
इंसेफ्लाइटिस सूबे की सरकार के लिए कलंक बन चुका है । आज तक इस दिशा में गंभीरता
से काम नहीं किया गया, बातें की गईं, ड्राइव भी चलाए गए लेकिन क्या हुआ ? आज तक मौतों का सिलसिला थमा नहीं है
... गोरखपुर और आस-पास के जिलों में इंसेफ्लाइटिस का कहर दशकों से है...अब तक
हज़ारों मासूम इसके शिकार हो चुके हैं..हर साल औसतन 500 छोटे-छोटे बच्चे इंसेफ्लाइटिस से मरते
हैं... लेकिन बजाय यहां स्वास्थ्य सेवाओं का हाल दुरुस्त करने के इस इलाके के
एकमात्र बड़े और आधुनिक अस्पताल माने जाने वाले बीआरडी मेडिकल कॉलेज को भी उसके
हाल पर छोड़ दिया गया है । कुछ साल पहले मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने पीजी कोर्स
के लिए मानक पूरे नहीं होने की वजह से मान्यता रद्द करने तक की चेतावनी दे दी थी ।
हालांकि बाद में मान्यता तो रद्द नहीं हुई लेकिन एमबीबीएस की सीटें 150 से घटाकर
50 कर दी गईं, सियासी कोशिशों के बाद एक बार फिर 100 किया गया, लेकिन इसके बाद इस
मेडिकल कॉलेज की बेहतरी के लिए कोई कोशिश नहीं की गई। बताने की जरूरत नहीं है कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज
ना सिर्फ उत्तर प्रदेश के दर्जनभर से ज्यादा जिलों के लिए इकलौता मेडिकल कॉलेज है
बल्कि ये बिहार के 6-7 जिलों के लोगों के लिए भी इलाज की एकमात्र उम्मीद है ।
अब एक बार फिर सियासतदानों को पूर्वांचल की याद
आई है.... यहां हुई ताबड़तोड़ रैलियां नेताओं का सियासी फिक्र दिखाती हैं ..अब
अगले कुछ महीने इसी सियासी ज़मीन पर अपने लिए नेता फसल तैयार करते दिखेंगे...
लेकिन जो चीज़ शायद ना दिखे वो है विकास की इमानदार कोशिश, अवाम की अपने हक को
हुकूक को लेकर जागरुकता ....
sir apka painapan sahi naap rha hai in sabko. well said
जवाब देंहटाएंपूर्वांचल में राजनीति की रफ्तार जितनी तेज रही है ..उतनी सुस्त विकास की रफ्तार है ..यहां कि जमीन एक तरफ फसल के लिए अच्छी है ..तो राजनीतिक के लिए कम उर्वर नहीं है ...ये बात और है कि खेतों में फसल के लिेए अच्छी खाद डालनी पड़ती है ...लेकिन यहां विकास की घटिया खाद...और वादों का पानी डाला जाता है ...जिससे पैदा हुई फसल जनता को तो कुछ नहीं देती...अलबत्ता नेताओं के घर जरूर भरते रहे हैं ...ये मौसमी मेला भी पर्वांचल में फिर लग रहा है ..
जवाब देंहटाएंsatik chitran purvanchal ke vytha ki aapke dwara. jaatiyataa ki bedi main jakadaa purvanchal apni duswariyon ke liye kise jimmedaar kahe
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