देश
में एक और बड़ा स्कैम बेपर्दा होने जा रहा है, अगर सीएजी रिपोर्ट को सही मानें तो
ये 2जी से भी बड़ा स्कैम हो सकता है। अभी तक सीएजी ने रिपोर्ट पेश नहीं की है,
बहुत मुमकिन है कि फरवरी में ये रिपोर्ट सार्वजनिक हो जाए लेकिन लोकसभा चुनाव से
ऐन पहले आने वाली ये रिपोर्ट कई सियासी दलों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
अगस्त
2012 में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल
पर बने देश के सबसे लंबे एक्सप्रेसवे, यमुना एक्सप्रेसवे को लेकर सीएजी ने जो
रिपोर्ट तैयार की है उसके घेरे में उत्तर प्रदेश की दो सरकारे हो सकती हैं। इसके
घेरे में 6 लेन के एक्सप्रेसवे का निर्माण कराने वाली कंपनी जेपी ग्रुप है, वो
बैंक है जिसने जेपी ग्रुप को हज़ारों करोड़ का लोन दिया और विस्तार से देखा जाए तो
वित्त मंत्रालय है ।
इस
एक्सप्रेस वे से आगरा से नोएडा के बीच की दूरी काफी कम हो गई, लेकिन इस पर शुरू से
लेकर अंत तक विवाद रहा, कभी ज़मीन अधिग्रहण को लेकर, तो कभी कंपनी को मिल रही
सरकारी सहूलियतों के लेकर। अब CAG की जो रिपोर्ट आने वाली है उससे एक बहुत
बड़े घोटाले की बू आ रही है, और इस घोटाले में भी राजनीति, कॉर्पोरेट और नौकरशाही के गठजोड़ का
काला सच सामने आता सकता है ।
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हजार करोड़ रुपए की लागत से बना ये एक्सप्रेस वे उत्तर प्रदेश का वो पहला प्रोजेक्ट
है, जिसे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर बनाया गया है। 2001 में राजनाथ सिंह
के मुख्यमंत्री रहते ग्रेटर नोएडा से आगरा के बीच एक एक्सप्रेस वे बनाने की बात
चली लेकिन इसे मंजूरी मिली 2003 में, उस साल सूबे में मुलायम सिंह की सरकार थी, तब
इसे ताज एक्सप्रेस वे नाम दिया गया था । लेकिन प्रोजेक्ट शुरु होते ही इसमें कई
तरह के अनियमितताओं के आरोप लगे और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसमें न्यायिक जांच के
आदेश दे दिए । सरकार ने जस्टिस एस आर मिश्रा कमीशन को मामले की जांच सौंप दी,
जस्टिस एस आर मिश्रा उस वक्त के चीफ सेक्रेटरी एपी सिंह के करीबी माने जाते थे।
जस्टिस मिश्रा कमीशन ने जांच में इस प्रोजेक्ट में किसी तरह की अनियमितता को खारिज
कर दिया, लिहाज़ा प्रोजेक्ट फिर शुरू हो गया । 2007 में मायावती मुख्यमंत्री बनी
उसके बाद भी इस प्रोजेक्ट पर काम चलता रहा । एक तरफ किसान और आम लोग अनियमितता के
आरोप लगा रहे थे, आए दिन प्रदर्शन भी हो रहा था लेकिन काम जारी रहा । पीपीपी मॉडल
के तहत बन रहे इस प्रोजेक्ट में सबसे ज्यादा फायदा जे पी ग्रुप को ही हुआ । इस प्रोजेक्ट के लिए सरकार ने किसानों से 185
किमी लंबी सड़क और इसके किनारे के सैकड़ों गांवों की ज़मीनों का अधिग्रहण किया और
ये जमीनें बहुत सस्ते दरों पर जे पी ग्रुप को दे दी गईं । करार के तहत जेपी ग्रुप
को इस जमीन पर हाउसिंग सोसायटीज़ डेवलप करनी थीं, लेकिन जेपी ग्रुप ने सस्ते में
मिली जमीनों को गिरवी रखकर बैंकों से हजारों करोड़ रुपए का लोन लिया जिसके लिए राज्य
सरकार अप्रूवर बनी। जेपी ग्रुप ने बाद में
खुद को लोन वापस करने में असमर्थ बता दिया, लेकिन इस मामले में बैंकों ने जेपी
ग्रुप पर कोई कार्रवाई नहीं की बल्कि बैंकों ने इस डूबे कर्ज को NPA
यानि
नॉन परफॉर्मिंग एसेट घोषित करने की तैयारी कर डाली। ये वही जेपी समूह है जिसपर
बैंकों का करीब 75 हजार 963 करोड़ का कर्ज है जबकि कंपनी की कुल मार्केट वैल्यू
30,785 करोड़ ही है, ऐसे में सवाल उठते ही हैं कि आखिर जे पी ग्रुप को ये लोन मिला
कैसे और अगर मिला तो क्या बैंक की कार्यशैली पर सवाल नहीं उठेंगे ।
हद
ये है कि अब इस एक्सप्रेस वे के किनारे की ज़मीनें जो जेपी ग्रुप ने सस्ती दरों पर
ली थीं अब उसे प्राइवेट बिल्डरों को बेचा जा रहा है । इस पूरे मामले में जिसे सबसे
ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है वो हैं वो किसान जिनकी जमीनों का अधिग्रहण किया गया
और बदले में नाम मात्र की कीमत दी गई । एक्सप्रेस वे को बनाने में एक्सचेकर का
पैसा लगा और जेपी ग्रुप ने अपनी झोली भर ली । हज़ारों करोड़ के इस प्रोजेक्ट को
लेकर बैंकिंग सेक्टर और वित्त मंत्रालय का रवैया भी सवालों के घेरे में आता है । हालांकि
अभी सीएजी की रिपोर्ट आनी बाकी है, अगर इसे बजट सेशन में पेश कर दिया जाता है तो
कांग्रेस सहित उत्तर प्रदेश में अलग अलग समय पर सत्ता में रहे क्षेत्रीय दलों के
लिए एक बार फिर जवाब देना मुश्किल हो जाएगा ।
सर भ्रष्टाचारियों पर नकेल सकने का काई उचित फर्मूला होना चाहिए...ताकि घोटालाओं का पर्दाफास होते ही कार्यवाई हो सके..
जवाब देंहटाएंसर, ये लेख भी है और स्टोरी आईडिया भी।
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