
कांग्रेस
के महासचिव जनार्दन द्विवेदी कहते हैं कि बिना विचारधारा के कोई पार्टी आगे नहीं
बढ़ सकती और अगर कोई पार्टी नारों के सहारे सत्ता पर काबिज होती है अराजकता,
अव्यवस्था फैलेगी, अब सवाल ये उठते हैं कि जनार्दन
द्विवेदी जी सियासत के किन सिद्धांतों की बात कर रहे हैं ... वो सिद्धांत जिनके
सहारे कांग्रेस और बीजेपी आज तक सियासत करती आई है ?

सच
तो ये है कि देश के दोनों बड़े राष्ट्रीय दल विचारधारा और सिद्धांत की बात सिर्फ
जनता को गुमराह करने के लिए करते हैं, इनकी
विचारधारा की राजनीति दिखावे की राजनीति है । इनका सिर्फ एक मकसद है, वो है सत्ता
हासिल करना, इसके लिए विचारधारा से समझौता करना तो बहुत छोटी बात है, वो इसके लिए कुछ भी करने और किसी भी हद
तक जाने को तैयार नज़र आते हैं । सच
तो ये है कि महात्मा गांधी,
दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और डॉ केशव बलिराम
हेडगेवार के आदर्शों की बात करने वाले, उनके
सिद्धातों की सियासत करने वाले दोनों राष्ट्रीय दल इन महापुरुषों के आदर्शों की
तिलांजलि दे चुके हैं ।
देश
के दोनों राष्ट्रीय दलों के राजनैतिक इतिहास पर नज़र डालें तो इनके द्वारा सैकड़ों
बार मूल्यों, सिद्धांतों की बलि दी जाती रही है ।
इन्होंने सत्ता हासिल करने के लिए, सत्ता
में बने रहने के लिए हर समझौते किए हैं । शिबू सोरेन, सुखराम, तसलीमुद्दीन सरीखे नेता, पं
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए की सरकार, मनमोहन सिंह और एचडी देवेगौड़ा के
नेतृत्व नें चली कांग्रेस की सरकार में सम्मानित पदों पर रहे हैं ।
देश
की दो बड़ी पार्टियों के सिद्धांत और सियासी समझौते की कई बानगी देश के इतिहास में
मौजूद हैं । ज़रूरत पड़ने पर भिंडरावाले को मान्यता देने और नक्सली आंदोलन चलाने
वालों से सांठगांठ करके सत्ता हथियाने के आरोप भी कांग्रेस पर लगते रहे हैं। कांग्रेस
की ही सरकार थी जब झारखंड मुक्ति मोर्चा घूस कांड सामने आया । वहीं पहली बार
टेलीकॉम घोटाला सामने आने पर नरसिम्हा राव के कार्यकाल में जिस बीजेपी ने कई दिनों
तक संसद नहीं चलने दी बाद में उसी पार्टी को इस घोटाले के जनक सुखराम की पार्टी
हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ हिमाचल में सरकार बनाने में बीजेपी को कोई गुरेज
नहीं रहा ।
देश
के इतिहास में पहली बार डेढ़ दर्जन अपराधियों और दागियों को कल्याण सिंह के
मुख्यमंत्री रहते उस वक्त बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे राजनाथ सिंह की पहल पर उत्तर
प्रदेश के मंत्रिमंडल में जगह दी गई । जो मुलायम सिंह यादव खुद को सांप्रदायिक
ताकतों के खिलाफ बताते आए हैं, जिन्होंने सेकुलरिज्म का नारा बुलंद किया हुआ है
उन्होंने भी कभी परोक्ष को कभी सीधे-सीधे बाबरी विध्वंस के नायक कल्याण सिंह से
गठबंधन किया है । क्षेत्रीय
दलों की स्थिति तो पहले से बेहद विवादास्पद रही है । DMK, ADMK, INLD, अकाली दल और वाईएसआर कांग्रेस के तमाम
नेताओं के विरुद्ध पहले से ही आर्थिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के मामले देश की
अलग-अलग अदालतों में लंबित हैं ।

ये
सच है कि जो आम आदमी पार्टी बनी है उसके पास सांप्रदायिकता, आर्थिक नीति, विदेश
नीति को लेकर कोई स्पष्ट राय नहीं है, लेकिन करीब साल भर पुरानी पार्टी से इतनी
अपेक्षा क्यों ?
128 पुरानी कांग्रेस पार्टी, विचारधारा के मसले पर कांग्रेस से अलग होकर भारतीय
जनसंघ, फिर बीजेपी बनने वाली पार्टी और क्षेत्रीय दलों के पास भी देश से जुड़े कई
अहम मुद्दों पर कोई स्पष्ट राय नहीं है तो आम आदमी पार्टी से इतनी अपेक्षा क्यों ?
