
सुप्रीम कोर्ट ने भले ही संवैधानिक व्यवस्था के तहत गौहाटी हाईकोर्ट के फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी हो लेकिन सीबीआई के गठन और औचित्य पर शुरु हुई बहस लंबे समय तक चल सकती है ।
दरअसल गौहाटी हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई के गठन पर ही सवाल खड़े कर दिए थे । गौहाटी हाईकोर्ट ने कहा था कि सीबीआई के गठन संबंधी गृह मंत्रालय का प्रस्ताव न तो केन्द्रीय कैबिनेट का फैसला था और न ही राष्ट्रपति की ओर से स्वीकृत कोई कार्यकारी निर्देश, ऐसे में इस प्रस्ताव को विभागीय निर्देश ही माना जा सकता है.. गौहाटी हाईकोर्ट ने कहा कि मामला दर्ज करने, आरोपियों को गिरफ्ताप करनेतलाशी लेने जैसी सीबीआई की कार्रवाई संविधान की धारा 21 का उल्लंघन है और ये असंवैधानिक करार दिए जाने लायक है।
सरकार ने गौहाटी हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट याचिका दाखिल की और सुनवाई के दौरान सीबीआई को बचाने के लिए मुख्य न्यायाधीश के सामने कई दलीलें दीं। अटॉर्नी जनरल जी ई वाहनवती ने कहा कि वर्तमान में सीबीआई के 9 हज़ार मामलों का ट्रायल चल रहा है, वहीं करीब 1000 मामले ऐसे हैं जिसकी जांच सीबीआई कर रही है । वाहनवती ने दलील दी कि हाईकोर्ट के फैसले का इन सभी मामलों पर असर पड़ेगा, इसके साथ ही पूरी कानूनी मशीनरी भी प्रभावित होगी । वाहनवती ने अपनी दलील में कहा कि सीबीआई का गठन Government of India (Transaction of Business) Rules के तहत किया गया है, और महज इसीलिए सीबीआई को असंवैधानिक करार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इसके गठन के लिए लाए गए प्रस्ताव में DSPE एक्ट 1946 का जिक्र नहीं किया गया है, और इसे राष्ट्रपति से स्वीकृति नहीं मिली है ।
सीबीआई की संवैधानिकता को लेकर कांग्रेस नेता मनीष तिवारी 2010 में संसद में प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर चुके हैं । अपने इस बिल में मनीष तिवारी ने सीबीआई को वैधानिक दर्जा दिए जाने को जरूरी बताया था । इस बिल में मनीष तिवारी कह चुके हैं कि सीबीआई का गठन का गैरकानूनी है और इसीलिए इसे वैधानिक दर्जा दिया जाना जरूरी है लेकिन वर्तमान में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे मनीष तिवारी का कहना है कि वो सरकार के फैसलों से बंधे हुए हैं ।
वैसे तो मामले की अगली सुनवाई अब 6 दिसंबर को होगी लेकिन सत्ता और सीबीआई दोनों को अपनी कार्यशैली और अपनी छवि को और पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की कोशिश करनी होगी । फिलहाल देश के कई बड़े नेताओं के खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है, या फिर लंबित है। इनमें लालकृष्ण आडवाणी, मायावती, मुलायम सिंह यादव सरीखे दिग्गज नेता भी शामिल हैं । इनमें 1984 सिख विरोधी दंगों के आरोपी सज्जन कुमार भी हैं जिन्होंने गौहाटी हाईकोर्ट के फैसले को आधार बनाकर अपने खिलाफ की जा रही जांच को गैरकानूनी करार देने की मांग भी कर डाली है । इसके अलावा 2जी घोटाला, कोल आवंटन घोटाला जैसे कई अहम मामले हैं जिसकी जांच सीबीआई कर रही है और जिसमें कई दिग्गज लोगों की किस्मत का फैसला होना है । देश की राजनीति में अहम भूमिका निभा चुके लालू यादव तो इन दिनों सीबीआई जांच के आधार पर ही जेल की हवा खा रहे हैं ।
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