कांग्रेस के युवराज राहुल
गांधी को एक बार फिर अंबेडकर और कांशीराम याद आ रहे हैं । ये वही कांग्रेस पार्टी है, जो अंबेडकर के जीते जी
लगातार उनका विरोध करती रही और उनको लोकसभा के चुनाव में बुरी तरह पराजित भी कराया,
जिसने कांशीराम के बहुजन मिशन को धता बताने की भरपूर कोशिश की। ये वही कांग्रेस
पार्टी है, जिसने जिसने जी के मूपनार, रामविलास पासवान, सुशील कुमार शिंदे और उदित
राज के जरिए परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से कांशीराम और मायावती को राजनीतिक शिकस्त
देने की हरसंभव कोशिश करती रही। इसी 125 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के राजनैतिक
उत्तराधिकारी राहुल गांधी अब दलित समाज के उत्थान के लिए एक से ज्यादा दलित नेताओं
की आवश्यकता की वकालत कर रहे हैं । पढ़ने और सुनने में राहुल गांधी का ये बयान भले
ही दार्शनिक और तार्किक हो लेकिन उद्देश्य बिल्कुल साफ है, कांग्रेस पार्टी तमाम
हथकंडों को आजमाने के बाद अब शायद इस कड़वे सच को आत्मसात कर चुकी है कि उत्तर
भारत में दलितों की पहली पसंद मायावती हैं , और मायावती के मुकाबले, सशक्त दलित
नेतृत्व की तलाश जरूरी है ।

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रामास्वामी नायकर पेरियार |
हम रामास्वामी नायकर
पेरियार, छत्रपति शाहू जी महाराज, डॉ भीमराव अंबेडकर, कांशीराम के राजनैतिक और सामाजिक
दर्शन से इत्तफाक भले ही ना रखते हों लेकिन एक बात तो माननी ही पड़ेगी कि इन
महापुरुषों में अपने राजनैतिक दर्शन और प्रतिबद्धता की वजह से अपने पूरे जीवन की आहूति
दे दी थी । जिस समय ये लोग दलित समाज के लिए आंदोलन चला रहे थे, उस समय इनके सामने
सत्ता की राजनीति से ज्यादा सामाजिक, आर्थिक बराबरी और सम्मान का मुद्दा था,
दलितों में सत्ता में भागीदारी की ललक तो कांशीराम ने पैदा की थी।
यहां पर राहुल गांधी के 8
अक्टूबर को दिल्ली के विज्ञान भवन में कांशीराम और अंबेडकर के बारे में दिए गए
बयान के लिए बधाई देनी चाहिए कि उन्होंने इतिहास की सच्चाई को सार्वजनिक रूप से
स्वीकार किया । कांग्रेस पार्टी को बधाई इस बात के लिए भी देनी चाहिए कि उन्होंने
आज़ादी के बाद दलितों को लोकसभा, विधानसभाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देकर
उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश की । ये अलग बात है कि इस
राजनैतिक फैसले के पीछे कांग्रेस पार्टी की सोच दलित समाज को कैप्टिव और बॉन्डेड वोट
बैंक के रूप में इस्तेमाल करने की थी। कांशीराम ने समाज के इतने बड़े तबके को अपने
कठिन परिश्रम और दृढ़ इच्छाशक्ति के जरिए कांग्रेस पार्टी के उस राजनैतिक गुलामी
से मुक्ति दिलाने में बहुत बड़ा योगदान दिया ।
देश के तमाम ऐसे राज्य
हैं, जहां पर दलितों की तादाद समाज के अन्य वर्गों की तुलना में ज्यादा है और आने
वाले लोकसभा चुनाव में उनका झुकाव जिस भी राजनैतिक दल की तरफ होगा उस राजनैतिक दल
को बेहतर कामयाबी मिल सकती है । इस कड़वी सच्चाई को समझते हुए दलितों के लिए
घड़ियाली आंसू बहाना राहुल गांधी की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है ।
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