लोकतंत्र बनाम निजी स्वार्थ
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राजनीति में सब कुछ जायज़ है ।लोकतंत्र और देश ऐसे मुद्दे हैं जिनको ढाल बनाकर अपने हितों की रक्छा की हर सम्भव कोशिस होती रही है ।
राजनीति में नयी पिड़ी और पुरानी पिड़ी का संघर्ष कोई नया नहीं है ।लेकिन जब तक अपना भला होता रहता है तब तक सब ठीक है ।नेतृत्व और उसकी नीतियाँ ठीक है ।अपने हितों के ख़िलाफ़ काम होते ही लोकतंत्र ख़तरे में पड़ जाता है ।
राजनीति के इस syndrome से भारत का कोई भी राजनैतिक दल अछूता नहीं है ।आज हम congress की मौजूदा विद्रोह और इसी syndrome का विश्लेषण करने की कोशिस करेंगे ।
Congress में इस बार के विद्रोह का नेतृत्व ग़ुलाम नबी आज़ाद कर रहे हैं वही ग़ुलाम नबी जो लगभग चालीस साल तक सत्ता के शीर्ष पर रहे ।उनके बारे में कोंग्रेस्सियों के बीच में एक मज़ाक़ चलता था ।उनके विरोधी उन्हें सत्ता का ग़ुलाम कह कर उनका मज़ाक़ उड़ाते थे।
नेतृत्व के क़रीब रहते हुए ग़ुलाम नबी और अहेमद पटेल सरीखे इन नेताओं ने मुस्लिम समाज के किसी भी दूसरे नेता को भरसक आगे बड़ने से रोकने की कोशिस की ।आज वही ग़ुलाम नबी पार्टी के कमजोर होने पर घड़ीयली आशू बहा रहे हैं ।
यह सच है की राहुल गांधी में संघटन को लेकर आगे बढ़ने की कूबत नहीं है ।राहुल के बारे में मैं पहले भी लिख चुका हूँ की वे defocussed, inconsistent,whimsical styleसे राजनीति कर रहे हैं ।
लेकिन ग़ुलाम नबी एंड company को congress पार्टी को मज़बूत करने से किसने और कब रोका ।ये सभी तो congress की apex body congress working committee के भी मेम्बर रहे हैं ।
Congress पार्टी के भीतर के ज़्यादातर फ़ैसले इनकी रज़ामंदी से होरे रहे हैं ।
वास्तव में इन नेताओं को अपने political future and rehabilitation की चिंता है । ठीक उसी तरह जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया को थी ।
राजनैतिक दलों में एक दूसरे को कमजोर करने आंतरिक विद्रोह को हवा देने की परम्परा पुरानी है ।इतिहास गवाह है कि इस तरह की वारदातें पहले भी होती रही हैं एक दिन पहले जम्मू में केसरिया पगड़ी बांधे ग़ुलाम नवी गैंग का जमावड़ा उसी की एक बानगी है ।
Congress इसके पहले भी विभाजित होती रही है । नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक कई बार पार्टी टूट चुकी है ।लेकिन यह भी सच है की भारत की जनता ने उसी congress को असली congress माना जिसका नेतृत्व नेहरू गांधी परिवार ने किया ।
आंतरिक विद्रोह की शिकार तो भाजपा भी रही है जनसंघ के समय से लेकर अब तक इस पार्टी में भी कई बार बिखराव देखने को मिलता है ।बलराज मधोक से लेकर कल्याण सिंह b s yedurappa ,यशवंत सिन्हा शत्रुघन सिन्हा अरुण सूरी और सुब्रमणियम स्वामी तो पार्टी नेतृत्व और नीतियों के ख़िलाफ़ अपनी अलग राय ज़ाहिर करते रहे हैं ।
दिलचस्प बात यह है की राहुल गांधी आज के बाग़ी भाजपा नेताओं की तारीफ़ ठीक उसी तरह से करते रहे हैं जैसे श्रीमान आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी ग़ुलाम नबी की तारीफ़ कर रहे हैं ।
इस तरह के राजनैतिक उठा पटक से छेत्रिय पार्टियाँ भी ग्रसित रही हैं ।वाम पंथी पार्टियाँ समाजवादी पार्टी Tdp,dmk ,aiadmkसब के सब इस तरह के कलह से गुजराती रही हैं ।
और इस तरह के आंतरिक गुटबाज़ी और विघटन में शामिल नेता हमेशा लोकतंत्र और देश , सिद्धांत की दुहाई देते रहे हैं ।